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नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

नवरात्रि 2025: 9 दिनों की देवी पूजा का महत्व और आयोजन विधि

नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

अम्बे तू है जगदंबे काली

जय दुर्ग खप्पर वाली

हम सब उतारे तेरी आरती

नवरात्रि 2025

ये आरती सुनते या गाते वक्त आपके मन कभी ऐसा आया कि सनातन धर्म में नवरात्रि क्यों मनाया जाता है। अगर ऐसा ख्याल नहीं भी आया है तो चिंता मत कीजिएगा हम यानी श्री घर आपको ऐसे ही सनातन धर्म से जुड़ी सभी जरूरी, गहन और सटीक जानकारी देते रहेंगे। तो बस इस लेख को अंत तक पढ़ते रहिए और सनातन संस्कृति की बातों को आगे तक पहुँचाने के लिए, इस नवरात्रि इस लेख को कम से कम 9 सनातनियों को जरूर शेयर करें

नवरात्रि क्यों मनाई जाती है? (Why is Navratri celebrated?)

नवरात्रि शब्द को तोड़ने पर हमे 2 शब्द यानी की नव और रात्रि 2 अलग-अलग शब्द मिलते हैं। यानी कोई ऐसा त्यौहार जो की 9 दिनों तक चल रहा हो उसे आम भाषा में हम नवरात्रि कह सकते हैं। लेकिन इस परिभाषा को पढ़ने के बाद कोई अज्ञानी या अबोध इस बात कैसे समझेगा कि 9 दिनों तक मनाने वाली नवरात्रि 9 देवियों के लिए ही मनाई जाती है?

आइए हम कुछ पॉइंटर्स की मदद से ये जानने की कोशिश करते हैं कि नवरात्रि क्यो मनाते हैं ?

सबसे पहला और प्रचलित मान्यता यह है कि आदि काल में महिषासुर नाम के एक राक्षस ने धरती, आकाश और पाताल तीनों लोको में आतंक मचा रखा था। कोई भी योद्धा या महिषासुर का अंत नहीं कर पा रहा था क्योंकि महिषासुर को स्वयं ब्रह्मा जी ने यह वरदान दिया था कि उसे कोई पुरुष, देवता या राक्षस मार नहीं सकता था। इस वरदान की वज़ह से महिषासुर ने स्वर्ग के राजा इंद्र देव को हराकर ख़ुद स्वर्ग का राजा बन बैठा था। इस घटना के बाद देवी दुर्गा ने 9 दिनों तक महिषासुर से युद्ध करके उसे हराया और देवताओं के साथ साथ मानवता का भी कल्याण किया। 

नवरात्रि के 9 दिन देवी के नाम और उनका महत्व

1. पहले दिन – शैलपुत्री
पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है। देवी शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और इन्हें पर्वतों की पुत्री माना जाता है। शैलपुत्री का पूजा मुख्य रूप से मानसिक शांति और आत्मसाक्षात्कार के लिए की जाती है। इनकी पूजा से व्यक्ति में मानसिक बल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

2. दूसरे दिन – ब्रह्मचारिणी
दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। इन्हें तपस्या और संयम की देवी माना जाता है। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप तप और संयम का प्रतीक है। इनकी उपासना से जीवन में सुख, समृद्धि और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है।

3. तीसरे दिन – चंद्रघंटा
तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। देवी चंद्रघंटा का रूप बहुत ही तेजस्वी और भयभीत करने वाला है। इन्हें शक्ति और साहस की देवी माना जाता है। इनकी पूजा से शत्रुओं का नाश और मानसिक शांति मिलती है।

4. चौथे दिन – कुष्मांडा
चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा होती है। देवी कुष्मांडा का रूप अत्यंत पवित्र और आदिशक्ति का प्रतीक है। इनकी पूजा से समृद्धि, स्वास्थ्य, और जीवन में हर प्रकार की बाधाओं का नाश होता है।

5. पांचवे दिन – स्कंदमाता
पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है। देवी स्कंदमाता की उपासना से संतान सुख की प्राप्ति होती है और माता के आशीर्वाद से संतान संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। ये भगवान स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता हैं और इन्हें संसार की सभी माओं की जननी माना जाता है।

6. छठे दिन – कात्यायनी
छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा होती है। देवी कात्यायनी का रूप अत्यधिक बलशाली और क्रूर है। इनकी पूजा से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक ताकत मिलती है। ये विशेष रूप से विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए पूजी जाती हैं।

7. सातवे दिन – कालरात्रि
सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा होती है। देवी कालरात्रि का रूप बहुत ही भयंकर है, लेकिन इनकी उपासना से बुरी शक्तियों और राक्षसों का नाश होता है। इनकी कृपा से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी डर और संकट समाप्त हो जाते हैं।

8. आठवे दिन – महागौरी
आठवें दिन देवी महागौरी की पूजा की जाती है। देवी महागौरी की उपासना से मानसिक शांति, सुख और सौंदर्य में वृद्धि होती है। ये देवी अपने शुद्ध और निर्मल रूप के लिए प्रसिद्ध हैं। इनकी पूजा से जीवन में शांति और सौभाग्य का आगमन होता है।

9. नौवे दिन – सिद्धिदात्री
नौवे दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप सभी सिद्धियों और शक्ति का प्रतीक है। इनकी उपासना से जीवन में किसी भी प्रकार की सिद्धि और समृद्धि की प्राप्ति होती है। वे सभी प्रकार की इच्छाओं को पूरा करने वाली मानी जाती हैं।

इन सभी देवीयों की पूजा से जीवन में समृद्धि, शांति और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।

1. चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में अंतर

नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व रखता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में क्या अंतर है? ये दोनों नवरात्रि के अवसर धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनके समय, उद्देश्य और महत्व में अंतर है।

    • चैत्र नवरात्रि: यह नवरात्रि हिन्दू कैलेंडर के चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में होती है। यह वसंत ऋतु में आती है और इसे विशेष रूप से माँ दुर्गा के आगमन के रूप में मनाया जाता है। इस समय वातावरण में ताजगी और ऊर्जा का संचार होता है, जिससे जीवन में नये उत्साह और आनंद की शुरुआत होती है।

    • शारदीय नवरात्रि: यह नवरात्रि आश्विन माह (सितंबर-अक्टूबर) में होती है और खासतौर पर माँ दुर्गा की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। यह नवरात्रि रहंग नवरात्रि भी कहलाती है, क्योंकि यह मानसून के बाद होती है और वातावरण में शुद्धता और ताजगी आ जाती है। शारदीय नवरात्रि को विशेष रूप से अश्विन माह के शुक्ल पक्ष के पहले नौ दिन मनाए जाते हैं।

भावनात्मक संबंध: दोनों नवरात्रियाँ जीवन में नये अध्याय की शुरुआत को दर्शाती हैं। चैत्र नवरात्रि से हम अपनी पुरानी आदतों और विचारों को छोड़कर सकारात्मकता की ओर कदम बढ़ाते हैं, जबकि शारदीय नवरात्रि में हम प्रकृति के बदलावों के साथ, आत्मसाक्षात्कार और शक्ति की प्राप्ति की ओर बढ़ते हैं।


2. नवरात्रि पूजा विधि: घर पर कैसे करें पूजा

नवरात्रि के नौ दिनों की पूजा और उपासना का उद्देश्य केवल देवी दुर्गा की आराधना करना नहीं है, बल्कि आत्मिक शुद्धता और आंतरिक शक्ति की प्राप्ति भी है। यदि आप घर पर नवरात्रि पूजा करना चाहते हैं, तो यह विधि आपके लिए एक मार्गदर्शन होगी:

1. पवित्रता का ध्यान रखें:

नवरात्रि पूजा के दौरान घर की सफाई और पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। यह न केवल शारीरिक शुद्धता को दर्शाता है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक शुद्धता को भी बढ़ावा देता है।

2. व्रत और उपवास:

अगर आप व्रत रखने का संकल्प लेते हैं तो इसे श्रद्धा और संकल्प के साथ रखें। व्रत के दौरान केवल फलाहार या हल्का भोजन करें और दिन में एक बार भोजन करने का प्रयास करें। उपवास का उद्देश्य शरीर और आत्मा को शुद्ध करना है।

3. माँ दुर्गा की पूजा विधि:

    • सबसे पहले एक साफ स्थान पर ताजे फूल रखें और माता दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।

    • फिर दीपक जलाएं, अगरबत्ती लगाएं और ध्यान से “ॐ दुं दुर्गायै नमः” का जप करें।

    • प्रत्येक दिन विशेष रूप से एक फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें।

4. आरती और भजन:

रात में नवरात्रि की आरती का पाठ करें और देवी के भजनों का गायन करें। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और घर में शांति बनी रहती है।

भावनात्मक संबंध: घर पर पूजा करने से न केवल आपको मानसिक शांति मिलती है, बल्कि परिवार में भी एकता और सामंजस्य का माहौल बनता है। यह समय आत्मा की शुद्धि और एक दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करने का होता है।


3. नवरात्रि के दौरान व्रत और उपवास के नियम

नवरात्रि के दौरान व्रत और उपवास रखना एक आध्यात्मिक यात्रा की तरह होता है। यह केवल शरीर को शुद्ध करने का तरीका नहीं है, बल्कि आत्मा को भी शक्ति और शांति प्रदान करता है।

व्रत रखने के कुछ महत्वपूर्ण नियम:

    • उपवास का उद्देश्य: व्रत का उद्देश्य न केवल शरीर को शुद्ध करना है, बल्कि अपने मन को भी नियंत्रण में रखना है। इस दौरान अहंकार और नकारात्मक भावनाओं को छोड़ना चाहिए।

    • फलाहार: अधिकांश लोग नवरात्रि में फलाहार करते हैं। इसमें आपको केवल ताजे फल, दूध, शहद, आदि का सेवन करना चाहिए।

    • भोजन का समय: उपवास के दौरान एक बार भोजन करने का नियम है। इसे आदर्श रूप से सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले करना चाहिए।

    • पानी का सेवन: उपवास के दौरान दिन में खूब पानी पीने का प्रयास करें ताकि शरीर में डिहाइड्रेशन न हो।

भावनात्मक संबंध: नवरात्रि का व्रत आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति को बढ़ाता है। यह समय है आत्म-निरीक्षण का, जिसमें हम अपनी सीमाओं को पार कर सकारात्मकता की ओर बढ़ते हैं।


4. नवरात्रि के 9 दिनों के रंग और उनका सांस्कृतिक महत्व

नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन एक विशेष रंग का महत्व होता है, जो आपके जीवन में ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक है। आइए जानते हैं नवरात्रि के रंगों के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के बारे में:

    1. पहला दिन (सफ़ेद): सफ़ेद रंग को शुद्धता और सत्य का प्रतीक माना जाता है। इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है, जो शांति और संतुलन का आशीर्वाद देती हैं।

    1. दूसरा दिन (लाल): लाल रंग शक्ति, उर्जा और साहस का प्रतीक है। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है, जो भक्तों को सच्चे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देती हैं।

    1. तीसरा दिन (नीला): नीला रंग आकाश और विशालता का प्रतीक है। इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होती है, जो आंतरिक शक्ति और ध्यान की शक्ति प्रदान करती हैं।

    1. चौथा दिन (पीला): पीला रंग ज्ञान और सकारात्मकता का प्रतीक है। इस दिन मां कूष्मांडा की पूजा होती है, जो जीवन में सुख-समृद्धि लाती हैं।

    1. पाँचवाँ दिन (हरा): हरा रंग समृद्धि और हरियाली का प्रतीक है। इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है, जो हमारी जीवन शक्ति को बढ़ाती हैं।

    1. छठा दिन (संतरी): संतरी रंग उत्साह और शांति का प्रतीक है। इस दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है, जो हमें मानसिक शांति और संकल्प शक्ति देती हैं।

    1. सातवां दिन (ग्रे): ग्रे रंग का संबंध संतुलन और सच्चाई से है। इस दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है, जो हमें बुराई से निपटने की शक्ति देती हैं।

    1. आठवां दिन (बैंगनी): बैंगनी रंग शांति और शक्ति का प्रतीक है। इस दिन मां महागौरी की पूजा होती है, जो हमें शांति और सुख की प्राप्ति देती हैं।

    1. नौवां दिन (सोना): सोने रंग का प्रतीक धन और समृद्धि है। इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है, जो हमें हर कार्य में सफलता और आशीर्वाद देती हैं।

भावनात्मक संबंध: इन रंगों और देवी-पूजाओं के माध्यम से हम जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझते हैं और उनसे जुड़ते हैं। नवरात्रि हमें हर दिन एक नया अवसर देती है, अपने अंदर की शक्ति को पहचानने और उसे सही दिशा में उपयोग करने का।