दीवाली के पटाखें और उनका विज्ञान, दीवाली का नाम आते ही सबसे पहले मन में दीपक की रौशनी, मिठाइयों की खुशबू और आसमान में चमकते रंग-बिरंगे पटाखों की छवि उभरती है।
हर साल दीवाली 2025 पर भारत के हर कोने में आतिशबाज़ी होती है बच्चे, युवा और बुज़ुर्ग सब आनंद लेते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये पटाखे जलते कैसे हैं? उनके रंग, आवाज़ और धमाके के पीछे कौन-सा विज्ञान काम करता है? आइए, जानें दीवाली के पटाखों का वैज्ञानिक रहस्य, उनके रासायनिक प्रभाव, पर्यावरणीय असर और स्वास्थ्य संबंधी खतरे।
दीवाली पटाखों का विज्ञान क्या है?
हर पटाखा असल में रासायनिक यौगिकों (chemical compounds) का मिश्रण होता है, जो जलने पर अलग-अलग रंग, आवाज़ और रोशनी पैदा करते हैं।
पटाखों में मौजूद मुख्य रासायनिक तत्व:
- पोटेशियम नाइट्रेट (KNO₃): पटाखे का प्रमुख ऑक्सीडाइज़र, जो आग को जलने में मदद करता है।
- सल्फर (S) और चारकोल (C): यह ईंधन के रूप में काम करते हैं, जो गर्मी और गैसें पैदा करते हैं।
- स्ट्रॉन्शियम (Sr): लाल रंग की आतिशबाज़ी बनाता है।
- कॉपर (Cu): नीला रंग पैदा करता है।
- सोडियम (Na): पीला या सुनहरा रंग देता है।
- बेरियम (Ba): हरा रंग उत्पन्न करता है।
- मैग्नीशियम (Mg): चमकीली सफेद रौशनी देता है।
इन सभी रसायनों के जलने से निकलने वाली ऊर्जा, ध्वनि तरंगें और गैसें मिलकर धमाके और रोशनी का शानदार दृश्य बनाती हैं जिसे हम “आतिशबाज़ी” कहते हैं।
दीवाली के पटाखों के रासायनिक प्रभाव
जब पटाखे जलते हैं, तो वे केवल रोशनी ही नहीं, बल्कि गैसें और सूक्ष्म कण (particulate matter) भी छोड़ते हैं।
इनमें से कुछ पदार्थ वातावरण में घुलकर हवा की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाते हैं।
प्रमुख रासायनिक प्रभाव:
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂): ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाता है।
- सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂): सांस संबंधी रोगों को बढ़ाता है।
- नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx): स्मॉग (धुंध) और अस्थमा जैसी समस्याएँ पैदा करता है।
- PM2.5 और PM10 कण: हवा में महीन धूल के रूप में फैलते हैं, जो फेफड़ों तक पहुँचकर हानिकारक असर डालते हैं।
वैज्ञानिक आंकड़े बताते हैं कि दीवाली की रात दिल्ली, पटना और लखनऊ जैसे शहरों में प्रदूषण का स्तर सामान्य दिनों से चार से पाँच गुना बढ़ जाता है।
फायरवर्क्स और पर्यावरण पर उनका प्रभाव
दीवाली का असली अर्थ है अंधकार पर प्रकाश की विजय, न कि हवा और प्रकृति पर धुएँ की परत।
लेकिन आधुनिक आतिशबाज़ी का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालता है।
पर्यावरणीय प्रभाव:
- हवा में प्रदूषण बढ़ने से AQI (Air Quality Index) “Hazardous” श्रेणी तक पहुँच जाता है।
- पशु-पक्षियों पर तेज़ आवाज़ का दुष्प्रभाव पड़ता है; वे घबराकर घायल हो जाते हैं।
- पौधों और फसलों पर रासायनिक धूल जम जाती है, जिससे उनकी वृद्धि प्रभावित होती है।
- जल स्रोतों के पास छोड़े गए पटाखों से रासायनिक अवशेष पानी को भी प्रदूषित कर देते हैं।
इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि ग्रीन क्रैकर्स (Green Fireworks) या इको-फ्रेंडली पटाखे का उपयोग करें, जो कम प्रदूषण फैलाते हैं।
फायरक्रैकर से जुड़ी सुरक्षा और जोखिम
पटाखे जलाना रोमांचक जरूर लगता है, परंतु यह काम हमेशा सतर्कता से करना चाहिए।
क्योंकि रासायनिक तत्वों की वजह से पटाखों से आग लगने, त्वचा जलने या श्वसन रोगों का खतरा रहता है।
सुरक्षा नियम (Firecracker Safety Tips):
- पटाखे हमेशा खुले मैदान या छत पर जलाएँ, भीड़ में नहीं।
- बच्चों को अकेले पटाखे न जलाने दें।
- सिंथेटिक कपड़े न पहनें; सूती कपड़े ही पहनें।
- जलते हुए पटाखे के पास न झुकें, और बुझा हुआ पटाखा दोबारा न जलाएँ।
- पास में हमेशा पानी की बाल्टी या अग्निशमन यंत्र रखें।
- “ग्रीन पटाखे” चुनें, जिनमें धुआँ और शोर कम होता है।
इन उपायों से आप दीवाली 2025 को सुरक्षित और प्रदूषण-मुक्त तरीके से मना सकते हैं।
दीवाली के पटाखे और स्वास्थ्य पर प्रभाव
दीवाली के दौरान बढ़ने वाला धुआँ और शोर केवल पर्यावरण को नहीं, बल्कि हमारे शरीर को भी प्रभावित करता है।
अधिकांश चिकित्सक चेतावनी देते हैं कि दीवाली के समय हवा में मौजूद सूक्ष्म कण श्वसन, आँखों और त्वचा पर हानिकारक असर डालते हैं।
मुख्य स्वास्थ्य जोखिम:
- सांस की समस्या: दमा (Asthma) और एलर्जी के मरीजों के लिए दीवाली के बाद के 24 घंटे सबसे कठिन होते हैं।
- आँखों में जलन और सूजन: धुएँ में मौजूद रसायन आँखों को चुभन और लालिमा देते हैं।
- त्वचा संबंधी एलर्जी: कुछ लोग सल्फर और धूल के संपर्क से स्किन रैश का शिकार हो जाते हैं।
- नींद और मानसिक तनाव: लगातार तेज़ आवाज़ से नर्वस सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है, जिससे चिड़चिड़ापन और नींद की कमी होती है।
- पशु-पक्षियों पर असर: तेज़ आवाज़ और धुएँ से पालतू जानवर डर जाते हैं और मानसिक रूप से अस्थिर हो जाते हैं।
इसलिए दीवाली के दौरान अपने और पर्यावरण दोनों की सुरक्षा के लिए संयम बरतना ही सच्ची समझदारी है।
क्या है ‘ग्रीन क्रैकर’?
भारत के CSIR (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद) द्वारा विकसित ग्रीन पटाखे ऐसे विकल्प हैं जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30-40% कम प्रदूषण फैलाते हैं।
इनमें पोटेशियम नाइट्रेट की जगह कैल्शियम नाइट्रेट, और चारकोल की जगह कम कार्बन ईंधन उपयोग किया जाता है।
इनसे कम धुआँ, कम आवाज़ और नियंत्रित ध्वनि प्रदूषण होता है।
दीवाली 2025 में इन पर्यावरण-मित्र पटाखों का उपयोग कर हम आनंद के साथ जिम्मेदारी भी निभा सकते हैं।
दीवाली का असली संदेश क्या है?
दीवाली का अर्थ केवल पटाखे जलाना नहीं, बल्कि अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाना है।
विज्ञान हमें सिखाता है कि संतुलन ही जीवन का आधार है
इसलिए जब हम प्रकृति का ख्याल रखते हैं, तभी सच्चे अर्थों में दीवाली का आनंद मिलता है।
सच्ची दीवाली मनाने के उपाय:
- अधिक से अधिक दीपक जलाएँ, कम पटाखे फोड़ें।
- पर्यावरण-मित्र ग्रीन पटाखे ही उपयोग करें।
- बच्चों को सिखाएँ कि आनंद जिम्मेदारी के साथ भी लिया जा सकता है।
- घर के पास पौधे लगाएँ और हवा को स्वच्छ रखने में योगदान दें।
निष्कर्ष
दीवाली 2025 का आनंद तभी सच्चा है जब हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर उसे मनाएँ।
पटाखों के पीछे का विज्ञान हमें रोशनी और ऊर्जा का रहस्य समझाता है, लेकिन यही विज्ञान हमें यह भी सिखाता है कि अत्यधिक प्रयोग विनाशकारी हो सकता है।
इस बार दीवाली पर सिर्फ़ आसमान नहीं, अपने जीवन में भी रोशनी फैलाएँ सुरक्षा, संतुलन और समझदारी के दीप जलाकर ही यह त्योहार पूर्ण बनता है।
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