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दीवाली और समृद्धि में लक्ष्मी जी की भूमिका

दीवाली और समृद्धि में लक्ष्मी जी की भूमिका

दीवाली 2025 का मुख्य आकर्षण है  माँ लक्ष्मी का पूजन।हिंदू धर्म में माँ लक्ष्मी को धन, वैभव, सौभाग्य और समृद्धि की देवी माना गया है। कहा जाता है कि जिस घर में सच्चे मन से लक्ष्मी पूजन होता है, वहाँ अंधकार मिटता है और शुभता का वास होता है।दीवाली का यह पर्व केवल दीपों का नहीं, बल्कि लक्ष्मी के स्वागत का पर्व है  जब हर घर में यह कामना की जाती है कि आने वाले वर्ष में समृद्धि, शांति और सफलता बनी रहे।

माँ लक्ष्मी का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक अमावस्या के दिन माँ लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं।  उनका प्रकट होना केवल धन का प्रतीक नहीं, बल्कि सदाचार और कर्मशीलता के प्रतिफल का संदेश था।

माँ लक्ष्मी का आध्यात्मिक अर्थ:

  1. लक्ष्मी का अर्थ है ‘लक्षण’ या ‘लक्षणीयता’  यानी वह ऊर्जा जो जीवन में गुण, सौंदर्य और संतुलन लाती है।
  2. वह केवल धन की नहीं, बल्कि बुद्धि, सद्गुण और संतोष की देवी हैं।
  3. दीवाली इस बात की याद दिलाती है कि सच्ची समृद्धि केवल धन नहीं, बल्कि जीवन में शांति और सकारात्मकता है।

माँ लक्ष्मी जीवन के आठ रूपों में पूजी जाती हैं  जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा जाता है, जैसे  धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, गजलक्ष्मी आदि।इसलिए दीवाली के दिन उनका पूजन पूरे जीवन में समृद्धि के आठों पक्षों को संतुलित करने का प्रतीक बन जाता है।

दीवाली लक्ष्मी पूजा विधि –

दीवाली की शाम को लक्ष्मी-गणेश पूजन का विशेष विधान बताया गया है। नीचे दी गई विधि शुरुआती लोगों के लिए भी सरल और पूर्ण है

1. घर की शुद्धि और सजावट

  • दीवाली से पहले घर की संपूर्ण सफाई करें।
  • दरवाजे और पूजा स्थल पर आम या केले के पत्तों का तोरण लगाएँ।
  • घर में दीपक और रंगोली से सुंदरता बढ़ाएँ  इससे लक्ष्मी जी के स्वागत का वातावरण बनता है।

2. पूजा स्थल की तैयारी

  • पूजा स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर चौकी रखें।
  • देवी लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति को विराजमान करें।
  • एक कलश रखें, उसमें गंगाजल, सुपारी, सिक्का और आम की पत्तियाँ डालें।
  • कलश के ऊपर नारियल रखकर उस पर मौली बाँधें।

3. लक्ष्मी पूजन विधि

  1. सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें, फिर माँ लक्ष्मी की।
  2. दीपक जलाएँ और धूप-अगरबत्ती लगाएँ।
  3. पुष्प, अक्षत, रोली, सिंदूर, मिठाई, पान-सुपारी अर्पित करें।
  4. लक्ष्मी जी को खील-बताशे, नारियल और चांदी के सिक्के चढ़ाएँ।
  5. “ॐ महालक्ष्म्यै नमः” या “श्री सूक्त” का पाठ करें।
  6. आरती करें और घर के सभी कोनों में दीपक जलाएँ।

समृद्धि के लिए लक्ष्मी जी को अर्पित करने योग्य वस्तुएँ – 

माँ लक्ष्मी की पूजा में अर्पित की गई वस्तुओं का अपना विशेष प्रतीकात्मक अर्थ होता है।

मुख्य अर्पण:

  • कमल का फूल: लक्ष्मी जी का प्रिय पुष्प; शुद्धता और सौंदर्य का प्रतीक।
  • चावल और हल्दी: समृद्धि और स्थायित्व का संकेत।
  • खील-बताशे: मिठास और पारिवारिक सुख का प्रतीक।
  • नारियल: पूर्णता और शुभता का प्रतीक।
  • सिक्के या मुद्रा: धन और आर्थिक स्थिरता का संकेत।
  • कपूर और घी का दीपक: नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता लाता है।

विशेष वस्तुएँ जो शुभ फल देती हैं:

  1. कमल गट्टा माला – धन और सफलता बढ़ाने के लिए।
  2. शंख और कौड़ी – समुद्र से निकले ये प्रतीक धन आकर्षित करते हैं।
  3. चांदी का सिक्का – इसे लक्ष्मी जी के चरणों में रखकर तिजोरी में रखने से आर्थिक स्थिरता आती है।

समृद्धि और धन के प्रतीक –

दीवाली केवल पूजा का नहीं, बल्कि शुभ संकेतों का भी पर्व है। हर प्रतीक का अपना अर्थ होता है जो समृद्धि का प्रतीक माना गया है।

प्रमुख प्रतीक और उनके अर्थ:

  • दीपक: ज्ञान और आत्मप्रकाश का प्रतीक।
  • स्वस्तिक चिह्न: मंगल और स्थिरता का सूचक।
  • कलश: पूर्णता और शुभ आरंभ का प्रतीक।
  • लक्ष्मी चरण पादुका: लक्ष्मी जी के आगमन का प्रतीक।
  • तुलसी पौधा: घर की पवित्रता और जीवन ऊर्जा का प्रतीक।
  • गाय और गौमाता: समृद्धि और पालन-पोषण का प्रतीक।

ये सभी प्रतीक हमें याद दिलाते हैं कि धन केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक समृद्धि भी उतनी ही आवश्यक है।

भारत के विभिन्न हिस्सों में लक्ष्मी पूजा की परंपराएँ –

भारत में दीवाली लक्ष्मी पूजा की विधियाँ क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग रूप में मनाई जाती हैं, पर भाव एक ही रहता है  माँ लक्ष्मी का स्वागत और कृतज्ञता का भाव।

उत्तर भारत:

  • यहाँ दीवाली की रात लक्ष्मी-गणेश पूजा के बाद पटाखे जलाकर उत्सव मनाया जाता है।
  • व्यापारी वर्ग नए बहीखाते की पूजा करता है, जिसे “लेखा पूजा” कहा जाता है।

पूर्वी भारत (बंगाल, ओडिशा, असम):

  • इस दिन माँ काली की पूजा भी की जाती है, जिसे शक्ति और समृद्धि का संगम माना जाता है।

पश्चिम भारत (गुजरात, महाराष्ट्र):

  • दीवाली के अगले दिन “गुजराती नया वर्ष” मनाया जाता है।
  • व्यापारी वर्ग लक्ष्मी-कुबेर की पूजा कर नए व्यवसाय की शुरुआत करता है।

दक्षिण भारत:

  • यहाँ दीवाली को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
  • लोग सुबह तेल स्नान कर लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा करते हैं, जिससे घर में शांति और पवित्रता बनी रहती है।

निष्कर्ष

दीवाली 2025 केवल धन का नहीं, बल्कि धार्मिकता और आंतरिक समृद्धि का त्योहार है। माँ लक्ष्मी का पूजन हमें सिखाता है कि सच्चा धन वही है जो कर्म, श्रद्धा और सदाचार से प्राप्त होता है।

दीपक की लौ हमें यह संदेश देती है “प्रकाश केवल बाहर नहीं, भीतर भी जलना चाहिए।”

इस दीवाली, केवल घर नहीं बल्कि अपने मन को भी प्रकाशित करें, ताकि लक्ष्मी जी की कृपा और समृद्धि का प्रकाश सदैव आपके जीवन में बना रहे।

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